Shani Chalisa – 1

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Shree Shani Chalisa : श्री शनि चालीसा – १

।।दोहा।।
श्री शनिश्चर देवजी, सुनहु श्रवण मम् टेर ।
कोटि विघ्ननाशक प्रभो, करो न मम् हित बेर ॥

।।सोरठा।।
तव स्तुति हे नाथ, जोरि जुगल कर करत हौं ।
करिये मोहि सनाथ, विघ्नहरन हे रवि सुवन ॥

।।चौपाई।।
शनिदेव मैं सुमिरौं तोही , विद्या बुद्धि ज्ञान दो मोही ।
तुम्हरो नाम अनेक बखानौं , क्षुद्रबुद्धि मैं जो कुछ जानौं ।।

अन्तक कोण रौद्रय मगाऊँ , कृष्ण बभ्रु शनि सबहिं सुनाऊँ ।
पिंगल मन्दसौरि सुख दाता , हित अनहित सब जग के ज्ञाता ।।

नित जपै जो नाम तुम्हारा , करहु व्याधि दुःख से निस्तारा ।
राशि विषमवस असुरन सुरनर , पन्नग शेष सहित विद्याधर ।।

राजा रंक रहहिं जो नीको , पशु पक्षी वनचर सबही को ।
कानन किला शिविर सेनाकर , नाश करत सब ग्राम्य नगर भर ।।

डालत विघ्न सबहि के सुख में , व्याकुल होहिं पड़े सब दुःक में ।
नाथ विनय तुमसे यह मेरी , करिये मोपर दया घनेरी ।।

मम हित विषम राशि महँवासा , करिय न नाथ यही मम आसा ।
जो गुड़ उड़द दे बार शनीचर , तिल जव लोह अन्न धन बस्तर ।।

दान दिये से होंय सुखारी , सोइ शनि सुन यह विनय हमारी ।
नाथ दया तुम मोपर कीजै , कोटिक विघ्न क्षणिक महँ छीजै ।।

वंदत नाथ जुगल कर जोरी , सुनहु दया कर विनती मोरी ।
कबहुँक तीरथ राज प्रयागा , सरयू तोर सहित अनुरागा ।।

कबहुँ सरस्वती शुद्ध नार महँ , या कहँ गिरी खोह कंदर महँ ।
ध्यान धरत हैं जो जोगी जनि , ताहि ध्यान महँ सूक्ष्म होहि शनि ।।

है अगम्य क्या करूँ बड़ाई , करत प्रणाम चरण शिर नाई ।
जो विदेश से बार शनीचर , मुड़कर आवेगा निज घर पर ।।

रहैं सुखी शनि देव दुहाई , रक्षा रवि सुत रखैं बनाई ।
जो विदेश जावैं शनिवारा , गृह आवैं नहिं सहै दुखारा ।।

संकट देय शनीचर ताही , जेते दुखी होई मन माही ।
सोई रवि नन्दन कर जोरी , वन्दन करत मूढ़ मति थोरी ।।

ब्रह्मा जगत बनावन हारा , विष्णु सबहिं नित देत अहारा ।
हैं त्रिशूलधारी त्रिपुरारी , विभू देव मूरति एक वारी ।।

इकहोइ धारण करत शनि नित , वंदत सोई शनि को दमनचित ।
जो नर पाठ करै मन चित से , सो नर छूटै व्यथा अमित से ।।

हौं सुपुत्र धन सन्तति बाढ़े , कलि काल कर जोड़े ठाढ़े ।
पशु कुटुम्ब बांधन आदि से , भरो भवन रहिहैं नित सबसे ।।

नाना भांति भोग सुख सारा , अन्त समय तजकर संसारा ।
पावै मुक्ति अमर पद भाई , जो नित शनि सम ध्यान लगाई ।।

पढ़ै प्रात जो नाम शनि दस , रहैं शनीश्चर नित उसके बस ।
पीड़ा शनि की कबहुँ न होई , नित उठ ध्यान धरै जो कोई ।।

जो यह पाठ करैं चालीसा , होय सुख साखी जगदीशा ।
चालिस दिन नित पढ़ै सबेरे , पातक नाशै शनी घनेरे ।।

रवि नन्दन की अस प्रभुताई , जगत मोहतम नाशै भाई ।
याको पाठ करै जो कोई , सुख सम्पति की कमी न होई ।।

निशिदिन ध्यान धरै मनमाहीं , आधिव्याधि ढिंग आवै नाहीं ।।

।।दोहा।।
पाठ शनीश्चर देव को, कीहौं विमल तैयार ।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार ।
जो स्तुति दशरथ जी कियो, सम्मुख शनि निहार ।
सरस सुभाषा में वही, ललिता लिखें सुधार ।

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